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Monday, November 16, 2015

कुछ फुटकर शेर ३

दूर मैदानों में जुगनुओं सी चमकती हैं बस्तियां
दिल के अंधियारे से जैसे बोलती हो स्मृतियां ।।

कुछ बोलिए कि ढल न जाए सूरज 
रात किसी ठिकाने पर नहीं होती ।।


इन आँखों का क्या कहिए कोई भरोसा नहीं
अपनी आँखों से देख लिया उनकी आँखों से भी ।।


ये शाम भी कुछ इस तरह अलग पड़ी पड़ी
तुम होते ढलती रात पलकों पर मुंदी मुंदी ।।


कोई रास्ता बता दीजिए
या फिर उस तक पहुँचा दीजिए।।
ये क्या हुआ इस जगह पहुँच कर
कि ये मुक़ाम गिरा दीजिए।।


अप्रमेय

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