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Friday, March 25, 2016

राजी

हम हो रहे हैं धीरे धीरे राजी
और इसे ही हम अपनी 
क़िस्मत समझ लेंगे 
कोई अचानक नहीं कहता है सच
धीरे धीरे परखता है 
वह तुम्हारा तापमान
उसे मालूम है
हलुआ बनाने की विधि
आदमी को गुलाम बनाने में
कैसे काम में लायी जा सकती है
आदमी के सपने बहुत पुराने हैं
यहाँ तक कि आदमी से भी पुराने
उसकी तड़प मुर्दा होने के पहले
थोड़ी साँसों की बची छटपटाहट है
जिंदगी उन्ही के पास हैं
जिनके हाथों में
पानी से भरा गिलास है
वो जानते हैं इसे और
वो भी छटपटाते हैं
कि गिलास पानी का
वह खुद भी नहीं पी पाते
न पिला पाते हैं
(अप्रमेय)

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