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Thursday, June 1, 2017

पारा

कितना आतुर है
दर्पण के भीतर
तुम सा दिखता हुआ,
भूत का रंग
और वर्तमान की तरलता
कैसे बदल देती है छवि,
भविष्य में संभावनाएं हैं
जो ये बोल दे
कि दर्पण तो पारा था
जो छिटकता रहा
इन तीनों के आर-पार ।
(अप्रमेय)

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