tag:blogger.com,1999:blog-46985921180417153202024-03-14T04:37:26.385-07:00सोहम बानी Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.comBlogger349125tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-23958455817560749422021-03-27T09:45:00.001-07:002021-03-27T09:45:33.268-07:00लौट आना ही<div>शहर में आता है सन्यासी</div><div>आता है 'साधू' </div><div>आता है मदारी,मजदूर</div><div>रिक्शावान</div><div>शहर में वे बसते हैं</div><div>जो जानते हैं -पहचानते हैं</div><div>सन्यासी का रूप</div><div>'साधू' का कमण्डलु</div><div>मदारी का डमरू</div><div>और मजदूर की कुदाल</div><div>गांव के लोग केवल एक ही</div><div>बात जानते हैं प्रारब्ध </div><div>सन्यासी हो तो</div><div>साधू हो, मदारी हो, रिक्शावान हो</div><div>या हो किसान तो</div><div>लौट आओ कि</div><div>घर सोने से ज्यादा</div><div>मर जाने के लिए</div><div>सबसे मुफ़ीद जगह है।</div><div>(अप्रमेय)</div><div><br></div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-5758032776078985212021-03-20T11:37:00.001-07:002021-03-20T11:37:16.984-07:00बेपरवाही<div>रास्ते अपने घर तक </div><div>आने के बाद खत्म नहीं हो जाते</div><div>नींद में जाने के बाद भी</div><div>खत्म नहीं हो जाती तुम्हारी याद, </div><div>पिछले बसंत उसने ही तो कहा था</div><div>हम रहें न रहें</div><div>ये पहाड़ ये झरने कुछ भी</div><div>खत्म नहीं होगा</div><div>सब कुछ रह जाएगा</div><div>एक-दूसरे की स्मृति में,</div><div>और अगर हम तुम भी न रहें</div><div>तो भी हमारे अनुपस्थिति में </div><div>उपस्थित रहेगा सब-कुछ,</div><div>सुनों प्रिय</div><div>मेरे कमरे में मेरी जो तस्वीर</div><div>मफलर ओढ़े लगी मढ़ी है</div><div>उसे देखना और जाड़े की किसी शाम</div><div>उसे आलमारी से उसे निकाल </div><div>लपेट लेना अपना गिरेबान </div><div>खत्म तो कुछ भी नहीं होगा</div><div>पर बड़ी शिद्दत से बचाये रखना है</div><div>इस दुनिया के लिए बेपरवाही</div><div>किसी चाय की दुकान पर मफलर लपेटे</div><div>बेपरवाही से ठहाका लगाना और</div><div>बेपरवाही से ही सही</div><div>थोड़ा मुझे याद कर लेना।</div><div>(अप्रमेय) साधो...🙏<br></div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-89399227115358904772020-11-15T07:39:00.001-08:002020-11-15T07:39:13.086-08:00दीपावली के बाद<div>दीपावली के बाद</div><div>---------------------------------------------------------</div><div>कल घर खड़े रहें हमेशा की तरह</div><div>पर दीप टिमटिमाते रहें</div><div>तितलियां उड़ती रहीं </div><div>भौरे रस पीते रहें</div><div>और वृक्ष खड़ा रहा ठीक अपने पते पर,</div><div>जो झबराये हुए पुष्प हिल-डुल कर</div><div>बातें कर रहे थे </div><div>उनमें से कुछ आज झर गए,</div><div>मैंने सुबह जब उठाया उन्हें अपने हाथों में</div><div>बिना विग्रह को चढ़ाये ही वे</div><div>प्रभु के चरणों में चढ़ गए,</div><div>तुम्हारी सुगन्ध मेरे पास है मेरे साथी </div><div>तुम जब भी आना </div><div>बिना मुझसे पूछे </div><div>स्मृति द्वार के अंदर</div><div>प्रवेश कर जाना।</div><div>। अप्रमेय ।<br></div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-60268395107495686492020-10-05T02:04:00.001-07:002020-10-05T02:05:11.351-07:00चिड़िया<div>गला जब भी भरता है</div><div>अनगिनत नदियों का जल छोड़ कर</div><div>कोई चिड़िया अंदर चली आती है,</div><div>सबसे पहली बार </div><div>इस दुनिया में जब </div><div>गला भर आने की घटना घटी होगी</div><div>तभी आंखों का जन्म हुआ होगा !</div><div>आंखें दो आंखें भर नहीं </div><div>चिड़िया है</div><div>जो पृथ्वी की भावदशा के दस्तावेज हैं</div><div>जिसे नई दुनिया के आदमी </div><div>पढ़ना भूल गए हैं</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-73158574809469722442020-09-18T04:08:00.001-07:002020-09-18T04:13:15.424-07:00गजल <div>कुछ कहने चलता हूँ</div><div>चुप्पी छा जाती है</div><div>गीत गाने उठता हूँ</div><div>आंख भर आती है,</div><div><br></div><div>रास्तों पर चलते हुए</div><div>घर की याद आती है</div><div>बिस्तरे पर लेटे हुए</div><div>जिंदगी सताती है,</div><div><br></div><div>इस शहर से उस शहर</div><div>रात कुछ बसर हुई</div><div>गांव से क्या निकले हम</div><div>फिर कभी न सहर हुई,</div><div><br></div><div>कोई पैमाना नहीं यह</div><div>बस दिल्लगी समझना</div><div>गजल हुई न हुई </div><div>कोई फर्क नहीं, कोई फर्क नहीं!</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-84109127048050640732020-09-17T06:16:00.001-07:002020-09-17T06:16:59.708-07:00युद्ध<div>जिंदगी पकड़ती है ऐसे</div><div>जैसे किसी अजगर </div><div>ने लपेट रखा हो,</div><div>सुबह-शाम एक अजीब सी उदासी से </div><div>आंख चुराते रहने का सिलसिला </div><div>अनवरत जारी है,</div><div>हमारे पंजे </div><div>दिमाग के इशारों पर लड़ते हुए</div><div>ढीला पड़ जाते हैं</div><div>एक चाय की प्याली को भी </div><div>अब थामे रख पाने की इच्छा नहीं करती,</div><div>बच्चे आते हैं अपनी पेंसिल को ही </div><div>तलवार बना लेते हैं</div><div>मैं देखता हूँ और डरा हुआ उनको कुछ</div><div>कहते-कहते रुक जाता हूँ</div><div>वे आपस में युद्ध करते हैं</div><div>और जोर-जोर से हंसते हैं</div><div>मैं चुप रह कर भी</div><div>युद्ध के नाम से कांप जाता हूँ।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-179954274520787092020-09-13T08:56:00.003-07:002021-08-08T09:25:25.775-07:00मुद्दे<div>मुद्दे कम हैं</div><div>गिले और शिकवे</div><div>तो बिल्कुल नहीं</div><div>असर मेरा इतना भर है</div><div>कि बदनाम हूँ</div><div>जाने किसके लिए!</div><div>सुना है कभी कहीं किसी गली में</div><div>जब भी मेरी बात हुआ करती है </div><div>वे मुस्कुराते भर हैं</div><div>और चुप हो जाते हैं</div><div>चुप रह</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-58210124638689707402020-09-13T08:55:00.001-07:002020-09-13T08:55:28.073-07:00लिख रहा हूँ<div>इतने दिनों से लिख रहा हूँ</div><div>क्योंकि मुझे मालूम है</div><div>वे लिखना नहीं जानते</div><div>उड़ना जानते हैं </div><div>तैरना जानते हैं</div><div>उदासी जानते हैं</div><div>पीड़ा जानते हैं</div><div>दुख जानते हैं पर</div><div>वे बुद्ध को नहीं जानते</div><div>गांधी को भी नहीं जानते</div><div>पता नहीं पर यकीं के साथ</div><div>कह सकता हूँ</div><div>मेरे देश के पशु-पक्षी</div><div>जीजस को भी नहीं जानते होंगे,</div><div>सुनो कोई अनुवादक है क्या</div><div>मेरे परिचितों में जो</div><div>इनकी स्थिति का </div><div>अनुवाद कर सकें</div><div>दुख क्या होता है और </div><div>प्रेम का क्या अर्थ है</div><div>इसका सही-सही </div><div>हम सभी को</div><div>अंदाज़ा दिला सके।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-18662194520829201842020-09-13T08:54:00.001-07:002020-09-13T08:54:27.984-07:00कह देना उनसे<div>सुनो उनसे कह देना</div><div>अब पत्तों के झरने की आवाज </div><div>नहीं सुनाई पड़ती</div><div>टूटते तारे अब </div><div>मनौती पूरी नहीं कर पाते</div><div>फूल अब जड़ों की कहानी </div><div>भौरों को बिना बताए </div><div>रस भर पिला देते हैं</div><div>एक शहर से निकलते</div><div>दूसरे शहर तक जाते रास्ते</div><div>अब बिना चाय पिये</div><div>हांफ रहे हैं</div><div>चिड़िया चुप है</div><div>नदियों से उसने पानी पीना छोड़ दिया है</div><div>गिलहरी ने कुँए के अंदर </div><div>बनाया है अपना घर</div><div>कल रात एक बुजुर्ग को</div><div>मैंने सुनाई अपनी बात</div><div>उसने कहा कवि हो ?</div><div>मैंने कहा नहीं </div><div>पहले था कभी </div><div>अभी फिलहाल</div><div>पागल हूँ।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-46507168365258727202020-09-13T08:53:00.001-07:002020-09-13T08:53:52.333-07:00ढल जाएगी शाम<div>शाम ढल गई</div><div>एक दिन मेरी भी </div><div>ढल जाएगी जिंदगी</div><div>सुबह होगी कारवाँ होगा</div><div>और धूल की तरह</div><div>बवंडरों के माफिक जाने कहाँ</div><div>बिसर जाएंगी सबके बीच से </div><div>मेरी यादें,</div><div>मैं सोचता हूँ सबके बीच से जाना</div><div>और खुद अपने-आपको</div><div>खोते हुए देखना </div><div>कितनी सुंदर घटना है</div><div>जहां हर तस्वीर हर चेहरा मुझे</div><div>पकड़ता है भाव-विभोर होते हुए</div><div>मेरे अस्तित्व के एक-एक कतरे का</div><div>सूखा रंग उनके पास है</div><div>जब-जब आंख भरेगी</div><div>तब-तब सागर में लहरे उठेंगी</div><div>तुम जिसे भाषा में</div><div>कविता समझते हो</div><div>दरअसल वे जीवन की छुपी हुई औषधि हैं</div><div>जिसके सूत्र कविताओं के चित्र में</div><div>प्राचीनतम भाव-लिपि से अंकित हैं।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-1421734323896903292020-08-15T01:39:00.001-07:002020-08-15T01:39:03.486-07:00जिनको बहुत जल्दी है<div>रुक जाओ अभी</div><div>बहुत गहमा गहमी है</div><div>जिंदगी पड़ी है यारों </div><div>इतनी भी क्या जल्दी है, </div><div>चीखते फिर रहे हैं जो</div><div>उनकी हरकतों को देखो</div><div>नाजायज़ की औलादे हैं </div><div>इनको बहुत जल्दी है,</div><div>मुहब्बत हो सके तो कर </div><div>इससे बड़ी इबादत कहाँ</div><div>सियासत तो केवल </div><div>लोफरों की लामबंदी है। </div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-83874862686594706512020-08-13T03:34:00.001-07:002020-08-13T03:34:52.062-07:00किसके पास जाएं<div>शब्दकोष में देखने जाऊं</div><div>तो भाव बह जाएगा</div><div>कहानी जो एक दृश्य सी</div><div>व्याकुल है तुम्हारे</div><div>समक्ष आने के लिए</div><div>वह फिर कविता में नहीं</div><div>गीत के स्वरों में निबद्ध हो जाएगी,</div><div>इसलिए तुम </div><div>उस शब्द को खोज लेना,</div><div>आम को डंडे में फंसा कर तोड़ा गया</div><div>थोड़ा छोटा ही सही</div><div>कैची से कुतर दी उसकी</div><div>नन्ही-नन्ही डंठलें,</div><div>टांगे से काटा गया पेड़</div><div>और कुदाल से </div><div>उसकी जड़ों को उखाड़ दिया गया,</div><div>हां याद आ गया वह शब्द </div><div>जो भूल गया था </div><div>हमारी भोजपुरिया भाषा में उसे</div><div>लग्गी कहते हैं</div><div>तुम खोजना कि </div><div>लग्गी के साथ-साथ</div><div>कैंची, टांगा और कुदाल को </div><div>क्या-क्या कहते हैं ?</div><div>अभी तक तो भूमिका रही</div><div>अब कविता कहता हूं कि</div><div>जिन्हों ने अपने</div><div>दुख कहने के लिए</div><div>पाठशालाओं से </div><div>नहीं सीखे हैं शब्द </div><div>वह किस सरकार के पास जाएं</div><div>किस देवता के आगे सर झुकाएं !</div><div>मेरी मानों किताब लिखते वक्त</div><div>और शब्दकोष के लिए </div><div>शब्द संग्रह करते वक्त</div><div>पाद टिप्पणी में और</div><div>अंतिम अक्षर के बाद कुछ जगह</div><div>खाली रखना</div><div>हां अपनी भूमिका में इस बात का</div><div>ज़िक्र अवश्य कर देना कि यह जगहें</div><div>सनातन रूप से खाली हैं</div><div>खाली ही रहेंगी।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-89583698692636662462020-08-08T23:05:00.001-07:002020-08-08T23:05:40.552-07:00ताकि हम चुप-चाप बात कर सकें<div>मृत शरीर को </div><div>तकिए की क्या आवश्यकता </div><div>ये सवाल था एक मरे हुए </div><div>व्यक्ति को देखकर जो मैंने </div><div>उसके परिवार वालों से नहीं पूछा,</div><div>आज सुबह-सुबह </div><div>फिर उसी सवाल ने मुझे घेर लिया</div><div>मुझे मालूम है इसका उत्तर</div><div>मुझे किसी ग्रंथ में नहीं मिलेगा</div><div>तभी अचानक एक छोटे से बच्चे के हाथ में</div><div>जब रक्षा सूत्र बंधा हुआ देखा</div><div>तो उसे पुचकारते हुए</div><div>अनायास ही पूछ पड़ा</div><div>यह क्या बांध रखा है बेटा ?</div><div>उसने कहा इसको बांधने से</div><div>भूत मेरे पास नहीं आएगा,</div><div>मैं सोच रहा हूँ तकिया, रक्षा सूत्र,</div><div>आदमी और मरे हुए आदमी के बीच</div><div>क्या फर्क है !</div><div>कुछ सवाल हैं जो सदा के लिए ही</div><div>अनुत्तरित रहने चाहिए</div><div>ताकि व्यक्ति एकांत में जा सके</div><div>अपने आप से चुप-चाप बात कर सके।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-61923506651763459412020-07-30T21:15:00.001-07:002020-07-30T21:15:26.720-07:00स्वप्न<div>बारिश में</div><div>शहर की गलियों में</div><div>उतर आती है नदी,</div><div>एक छोटी बच्ची</div><div>कागज की नांव बनाए</div><div>तैराती है अपने सपनें</div><div>पानी धीरे-धीरे बह जाता है</div><div>किसी खेत में</div><div>नांव की वह चुगदी</div><div>सदा के लिए मिट्टी हो कर</div><div>पेड़ों या हरी-भरी घासों में </div><div>तब्दील हो जाती है,</div><div>सपनें बोलते नहीं </div><div>आदमी के अंदर एक दृश्य बनाते हैं</div><div>कभी-कभी मुझे लगता है</div><div>यह सारी वनस्पतियां </div><div>किसी के देखे हुए स्वप्न हैं।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-54286079495486404382020-07-25T22:41:00.000-07:002020-07-25T22:41:43.382-07:00देखना<div>महल की अटारी से नहीं</div><div>छप्पर की छेद से </div><div>सितारों को देखना</div><div>ये अंधेरा कितना गहरा है</div><div>किसी गरीब की आँख से </div><div>देखना</div><div>वह देश के सिपहसलारों </div><div>की बात किया करता है</div><div>कुछ जरूरी सवालात उससे</div><div>जरा पूछ कर</div><div>देखना,</div><div>जो खोज रहे हैं राह</div><div>वहीं जहां चंद लोग पहुंचे हैं</div><div>उनकी बात करने के अंदाज़ को</div><div>जरा गौर से</div><div>देखना।</div><div><div>महल की अटारी से नहीं</div><div>छप्पर की छेद से </div><div>सितारों को देखना</div></div><div>(अप्रमेय)</div><div><br></div><div><br></div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-53798187234780337452020-07-16T10:27:00.001-07:002020-07-16T10:27:20.566-07:00मेरे न होने का अर्थ<div>मैंने अपने आप को हटा लिया</div><div>और कमरा भर गया हवाओं से</div><div>कोयल की गूंज, आसमां की शांति</div><div>और धरती की नमी </div><div>धीरे-धीरे मेरे कमरे के सोफे पर बैठते </div><div>हुए अपने पैर पसार लिए मेज पर</div><div>कोई चींटी उनके पांवों तले रौदी नहीं गई</div><div>सन्नटा मेरे न होने का</div><div>भर रहा था अर्थ</div><div>हर खाली पड़े बर्तनों में</div><div>घर के पिछवाड़े हरिश्रृंगार की छांव तले</div><div>जाने कहाँ से सूर्य एक चम्मच धूप लिए</div><div>कोई संदेशा ले आया,</div><div>मेरा न होना </div><div>मेरे होने के अस्तित्व से गहरा है</div><div>ये जान कर मैंने मन ही मन</div><div>मृत्यु को गले लगाया।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-50713368740171910012020-07-16T10:26:00.001-07:002020-07-16T10:26:13.430-07:00बारिश के बाद<div>बारिश के बाद</div><div>---------------------------;</div><div>गद्य की चौहद्दी से दूर </div><div>कविता के व्याकरण से पार</div><div>बारिश को देखना </div><div>केचुए की तरह खेत से </div><div>बाहर निकल आना होता है,</div><div>पेड़ की शाखाओं की तरह</div><div>एकदम गीला होकर भाव से गदराए हुए</div><div>साष्टांग मुद्रा में पड़ जाना होता है</div><div>बारिश में आज भीगते हुए</div><div>मैंने सुना भाषा को बरसते हुए</div><div>आसमान गरज कर उसे डांट रहा था</div><div>कुछ कहने से उसे रोक रहा था</div><div>पहाड़ों ने, पेड़-पक्षियों ने, तलहटी ने</div><div>सभी ने उसकी गर्जना को खारिज किया</div><div>भीग कर बारिश के साथ गप्पे लड़ाया</div><div>समुद्र और नदी-तालाब सभी तेजी से</div><div>लहरों में बुन रहे थे </div><div>अपने-अपने राग-रागिनियाँ</div><div>बारिश झर-झर करते कह रही थी</div><div>अस्तित्व की कहानी</div><div>ईश्वर चुप-चाप सुन रहे थे </div><div>अपनी भूली कहानी।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-82588052431852865242020-07-16T10:25:00.001-07:002020-07-16T10:25:22.742-07:00हम<div>छत मिले न मिले</div><div>आकाश हमारे सपनों में जिंदा रहेगा,</div><div>तुम अपने नाम के झंडे फहराओं</div><div>हम चिड़ियों के पंख को </div><div>फहरता देखते रहेंगे,</div><div>तुम निकालते रहना फोड़ कर हमारे छत्ते</div><div>हम शहद सा जीवन के पेड़ में</div><div>इकट्ठे होते रहेंगे।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-39503547173409550372020-07-16T10:24:00.001-07:002020-07-16T10:24:42.684-07:00सफर में जिंदगी<div>सफर में जिंदगी</div><div>------------------------</div><div>सफर में जिंदगी और मैं </div><div>अलग-अलग हिसाब से </div><div>मिलते रहे</div><div>कभी पेड़ों के नीचे चुप-चाप</div><div>दाना चुगती चिड़ियों के पास</div><div>तो कभी सुबह की तैयारी में </div><div>लटकते हैंगरों में आधे गीले आधे </div><div>सूखते कपड़ों के पास,</div><div>जिंदगी की तमाम शक्ल </div><div>आती रहीं और जाती रहीं</div><div>पर उनसे मन भर कभी </div><div>मिलना नहीं हो पाया</div><div>सफर में हो जिंदगी </div><div>तो अनायायास ही </div><div>सफर में ही हो जाती है कविता </div><div>मैं शीशे के सामने कभी- कभी </div><div>छूता हूँ अपने हाथ-पाँव </div><div>और धीरे से बरौनियों के नीचे </div><div>आँखों के अंदर उतर कर ढूँढ़ता हूँ </div><div>मंजिल का पता पर</div><div>वहां कोई टिकट नहीं मिलता </div><div>जिस पर लिखा हो</div><div>शहर का नाम और वहां पहुँचने का समय </div><div>सफर में जिंदगी और कविता </div><div>कितनी दूरी और कितना भाव </div><div>इकठ्ठा कर सकेंगे </div><div>ये कौन जानता है !!!</div><div>(अप्रमेय )</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-9759332908506012072020-07-16T10:23:00.003-07:002021-09-04T09:28:43.675-07:00एक आह<div>एक आह जो उठी </div><div>बस इतना देखने भर से</div><div>कि इस महामारी में वह</div><div>रिक्शा चला रहा है,</div><div><br></div><div>सदियों से बैठे सर्प ने फिर</div><div>उठाया अपना फन</div><div>और डस कर फैला देना चाहा</div><div>व्याकरण का जहर, </div><div><br></div><div>मैं चुप हूँ और कुछ भी नहीं लिखकर</div><div>बिना किसी लीपा-पोती के </div><div>कवियों से क्षमा मांग रहा हूं</div><div>और कविता लिखने से </div><div>फिलहाल इनकार कर रहा हूँ।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-22946401739028274492020-07-16T10:23:00.001-07:002020-07-16T10:23:07.544-07:00बारिश<div>बारिश को बारिश की तरह नहीं</div><div>शब्द के रूप में देखो </div><div>धरती को सिर्फ धरती नहीं</div><div>एक कागज की तरह देखो</div><div>पौधों को सिर्फ पौधा नहीं</div><div>पूरी विकसित एक </div><div>भाषा के रूप में सुनों</div><div>मेरी कविता को </div><div>सिर्फ कविता नहीं</div><div>एक पागल का </div><div>विलाप समझो।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-16073072470145521692020-07-16T10:22:00.001-07:002020-07-16T10:22:27.585-07:00पकड़ डीहा<div>पकड़ डीहा</div><div>---------------</div><div>कुछ नाम स्मृतियों में</div><div>ऐसे टंगे हैं जैसे </div><div>सुबह टंगा रहता है सूरज</div><div>शाम टंके रहते हैं तारे,</div><div>कुछ आकृतियां पीछे से</div><div>झांकती हैं ऐसे जैसे कोई दुल्हन</div><div>निहारती हो राह अपने प्रियतम की,</div><div>एक धुन भैंस की पीठ पर सवार होकर</div><div>बांसुरी पर निकालता है </div><div>कोई सांवला लड़का</div><div>उसका नाम नहीं पता मुझे</div><div>मैं आंखे बंद कर के </div><div>निहारता हूँ मानचित्र</div><div>किसी उपन्यास के कवर पृष्ठ की तरह</div><div>सड़क के किनारे </div><div>एक दीवार पर लिखा देखता हूं </div><div>पकड़ डीहा।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-19809539642933031392020-05-26T03:19:00.001-07:002020-05-26T03:19:42.640-07:00सपनों में साकार किया<div>तुम आओगे नहीं</div><div>ये मुझे मालूम है</div><div>एक झबराये पेड़ को देखते हुए</div><div>मुझे ऐसा अनुभव हुआ</div><div>तभी जाने कहाँ से एक तितली</div><div>पत्तों के बीच से निकल पड़ी</div><div>और उड़ती हुई आंक गई</div><div>मेरे भीतर पीले रंग की स्मृति</div><div>मैंने चुप चाप शरण ली उस पेड़ की</div><div>दोपहरी की पीली धूप </div><div>पीली छांव में बदल गई</div><div>पीला होता मेरा चेहरा</div><div>लोगों के लिए दुख का कारण बना</div><div>मैंने बुद्ध को याद किया</div><div>शिव को जपा</div><div>और उन सभी के साथ</div><div>पीले पड़ते सपनों को</div><div>सपनों में ही साकार किया।</div><div>(<i>अप्रमेय</i>)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-80952793109643464882020-05-24T21:12:00.001-07:002020-05-24T21:12:08.842-07:00ढोंग<div>तुम्हारी सारी कथाएं </div><div>महान बनने के ढोंग हैं</div><div>जो महान नहीं बन पाए </div><div>मैं उन्हें बारम्बार प्रणाम करता हूँ</div><div>कथा के उन पात्रों की </div><div>जिनकी लाशें भी चील-कौओं के काम आईं</div><div>कथा के उन पात्रों की भी जिन्होंने</div><div>बिना किसी दिव्यज्ञान के </div><div>अपनी मौत मुकर्रर की </div><div>और परवाह किए बिना</div><div>अपना काम किया</div><div>मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ,</div><div>तुम आकाशीय ज्ञान के</div><div>साथी हो मेरे भाई</div><div>जरा अपनी धरती पर </div><div>कान सटा कर सुनना</div><div>जिसे तुम माँ कहते हो</div><div>वह कब से तुन्हें पुकार रही है</div><div>कुछ कहना है उसे इसके लिए </div><div>एक भाषा तलाश रही है।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4698592118041715320.post-57464734293992935772020-05-16T22:07:00.001-07:002020-05-16T22:07:42.151-07:00ईश्वर डांट सुनना चाहते हैं<div>उन्होंने कहा ईश्वर वे चुप रहा</div><div>उन्होंने रचे पाठ वो सुनता रहा</div><div>गढ़ी मूर्तियां पहनाए वस्त्र</div><div>वह देखता रहा</div><div>सुबह-शाम गांव-गांव </div><div>अब उन्हें छोड़</div><div>उन्हें सजाने वालों की </div><div>चर्चा चलने लगी</div><div>यह सब सुनते, देखते </div><div>मंदिर में खड़े देवता के प्रेम में</div><div>किसी ने रच डाला एक गीत </div><div>दूसरे ने उसमें भरे कुछ स्वर</div><div>फिर धीरे-धीरे लोगों ने इस </div><div>गूंज को बनाया मन्त्र और </div><div>स्थापित हुआ एक प्राणवान विग्रह</div><div>लोगों ने अपने अपने हृदय में</div><div>किए देवता के दर्शन</div><div>पहनाया एक दूसरे को माला</div><div>और अपने अपने कामों में लग गए</div><div>तब जब उन्होंने सजाया था ईश्वर </div><div>कोई आकशवाणी नहीं हुई थी </div><div>और अब भी वे चुप ही हैं</div><div>पर अब शायद लोगों ने यह जान लिया है </div><div>कि गांव-गांव छप्पर-छप्पर</div><div>हर घर मे वे जन्म ले रहे हैं</div><div>सोहर सुनने के लिए</div><div>लोरियों को लय देने के लिए</div><div>शायद कभी वे मंदिर में रहते हों</div><div>पर नए सदी के भगवान को </div><div>एकांत पसंद नहीं</div><div>वे अब घरों में रहना चाहते हैं</div><div>अपनी मां की डांट सुनना चाहते हैं।</div><div>(अप्रमेय)</div>Apramay Mishrahttp://www.blogger.com/profile/13042066966994624048noreply@blogger.com0