दीपावली के बाद
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कल घर खड़े रहें हमेशा की तरह
पर दीप टिमटिमाते रहें
तितलियां उड़ती रहीं
भौरे रस पीते रहें
और वृक्ष खड़ा रहा ठीक अपने पते पर,
जो झबराये हुए पुष्प हिल-डुल कर
बातें कर रहे थे
उनमें से कुछ आज झर गए,
मैंने सुबह जब उठाया उन्हें अपने हाथों में
बिना विग्रह को चढ़ाये ही वे
प्रभु के चरणों में चढ़ गए,
तुम्हारी सुगन्ध मेरे पास है मेरे साथी
तुम जब भी आना
बिना मुझसे पूछे
स्मृति द्वार के अंदर
प्रवेश कर जाना।
। अप्रमेय ।