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Saturday, August 15, 2020

जिनको बहुत जल्दी है

रुक जाओ अभी
बहुत गहमा गहमी है
जिंदगी पड़ी है यारों 
इतनी भी क्या जल्दी है,               
चीखते फिर रहे हैं जो
उनकी हरकतों को देखो
नाजायज़ की औलादे हैं           
इनको बहुत जल्दी है,
मुहब्बत हो सके तो कर 
इससे बड़ी इबादत कहाँ
सियासत तो केवल 
लोफरों की लामबंदी है।        
(अप्रमेय)

Thursday, August 13, 2020

किसके पास जाएं

शब्दकोष में देखने जाऊं
तो भाव बह जाएगा
कहानी जो एक दृश्य सी
व्याकुल है तुम्हारे
समक्ष आने के लिए
वह फिर कविता में नहीं
गीत के स्वरों में निबद्ध हो जाएगी,
इसलिए तुम 
उस शब्द को खोज लेना,
आम को डंडे में फंसा कर तोड़ा गया
थोड़ा छोटा ही सही
कैची से कुतर दी उसकी
नन्ही-नन्ही डंठलें,
टांगे से काटा गया पेड़
और कुदाल से 
उसकी जड़ों को उखाड़ दिया गया,
हां याद आ गया वह शब्द 
जो भूल गया था 
हमारी भोजपुरिया भाषा में उसे
लग्गी कहते हैं
तुम खोजना कि 
लग्गी के साथ-साथ
कैंची, टांगा और कुदाल को 
क्या-क्या कहते हैं ?
अभी तक तो भूमिका रही
अब कविता कहता हूं कि
जिन्हों ने अपने
दुख कहने के लिए
पाठशालाओं से 
नहीं सीखे हैं शब्द 
वह किस सरकार के पास जाएं
किस देवता के आगे सर झुकाएं !
मेरी मानों किताब लिखते वक्त
और शब्दकोष के लिए 
शब्द संग्रह करते वक्त
पाद टिप्पणी में और
अंतिम अक्षर के बाद कुछ जगह
खाली रखना
हां अपनी भूमिका में इस बात का
ज़िक्र अवश्य कर देना कि यह जगहें
सनातन रूप से खाली हैं
खाली ही रहेंगी।
(अप्रमेय)

Saturday, August 8, 2020

ताकि हम चुप-चाप बात कर सकें

मृत शरीर को 
तकिए की क्या आवश्यकता 
ये सवाल था एक मरे हुए 
व्यक्ति को देखकर जो मैंने 
उसके परिवार वालों से नहीं पूछा,
आज सुबह-सुबह 
फिर उसी सवाल ने मुझे घेर लिया
मुझे मालूम है इसका उत्तर
मुझे किसी ग्रंथ में नहीं मिलेगा
तभी अचानक एक छोटे से बच्चे के हाथ में
जब रक्षा सूत्र बंधा हुआ देखा
तो उसे पुचकारते हुए
अनायास ही पूछ पड़ा
यह क्या बांध रखा है बेटा ?
उसने कहा इसको बांधने से
भूत मेरे पास नहीं आएगा,
मैं सोच रहा हूँ तकिया, रक्षा सूत्र,
आदमी और मरे हुए आदमी के बीच
क्या फर्क है !
कुछ सवाल हैं जो सदा के लिए ही
अनुत्तरित रहने चाहिए
ताकि व्यक्ति एकांत में जा सके
अपने आप से चुप-चाप बात कर सके।
(अप्रमेय)