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Saturday, January 23, 2016

सच-झूठ

मेरे सच में 
झूठ बस इतना है
तेरे झूठ में 
सच भर जितना है 
(अप्रमेय)

कि

गुजरना किसी का 
याद न रहा कभी
पर किसी का आना
मेरे लिए जरूर ले आता है
अजुरी भर सवाल,
मेट्रो शहर के माफ़िक
आकाश से मग्गे में
पानी सा मिलती है धूप
कतरा-कतरा,
कि अटकी रहती हैं सांस
बारहवीं मंजिल पे
खिड़की से किसी गुमनाम
पेड़ के पत्ते को ताकते ,
हमें पता है
सीढ़ियों से चलने की आती आवाज
नहीं रुकेगी हमारे दरवाजे पे
पर आना किसी का
इस शताब्दी में
गिलास भर पानी की तरह
गले को आँखों सा
नम कर जाता है |
(अप्रमेय)

आह सा...!

मेरे लिए लिखना 
न जानते हुए उसे
भूल जाना है 
मेरे लिए भूल जाना 
उस गुमनाम के सामने 
प्रार्थना है और
आँख न मिला पाना
वेदना है
शब्दों में
फूल सा
कि
सुगंध सा
कि
आह सा...!
(अप्रमेय)

जिंदगी है

छोड़ देना है 
या छूट जाएगा
कोई उपाय है ?
तलाशते हुए 
धीरे-धीरे 
इन सब के बीच
ज़िन्दगी को जीना
ज़िन्दगी है,
तुम भी नहीं
मैं भी नहीं
कोई भी तो नहीं
जो दिलासा दे सके
फिर भी
भरोसे की आँख टटोलना
ज़िन्दगी है,
फ़ेहरिस्त का हिसाब
झूठा है
जानते हैं सब यहाँ
फिर भी ज़ोर से
आवाज़ लगाना
मिट जाएगी जो पहचान
उसे निभाना
ज़िन्दगी है ।
(अप्रमेय )

वह जो

मैं कुछ लिख दूँ
क्या !
मालूम नहीं 
लो
आ गया ख्याल 
फूल का
कि वह तो मुरझा गया होगा
किताब में रखा हुआ ।
(अप्रमेय)

ये भी बस

कोई कह दे कि रात तालाश की सी स्लेट नहीं 
उजाले सा यह चौक अरसे से परीशां करता है 

रात अपनी जिद में ही डूबे चली जाती है
मेरी आदत में शुमार है इसे चुपचाप देखना 

जिंदगी का हिसाब नहीं मिलता मुझको 
कि इक कतरा भर जो देख लिया तुमको 

कोई मिल गया राह चलते यों ही 
मंज़िले ख़याल फिर बौना निकला

सुना तुमने वही जो तुम्हे बतानी थी
कह न सका वही जो तुम्हे सुनानी थी

सुनो

कभी पूछ लोगे जो हाल मेरा
कुछ बिगड़ तो न जाएगा
इस राह में दीवाने को
कुछ सुकूँ तो मिल जाएगा
(अप्रमेय)

बस यों ही

ये सफ़र असां नहीं इतना भर जान लीजिए
रुक रुक के चलना और कहीं चल के रुक जाना

आँखों में उनके देखता हूँ सुकूं मिल जाता है
है दर्द दबा जो इधर छिपा उधर मिल जाता है
(अप्रमेय)

सच

मेरे सच में 
झूठ बस इतना है
तेरे झूठ में 
सच भर जितना है 
(अप्रमेय )

कुछ छोटे-मोटे

१-एक शाम कोई मेरी ऐसी भी गुजर जाए
मैं सच कहूँ और वो इसे मान भी जाए ।।


२-सिमटा कि फ़ैल गया 
है यही मेरा फ़साना,
लबे तरन्नुम जो कभी गजल रही
गा रहा उसे अब जमाना ।।

३-खुद कह दूँ तो भरोसा हो न पाएगा
तुम्ही कहो कि फिर कह दूँ कैसे 

४-गुजर रहा है वह सरे जिंदगी में ऐसे 
बरस रहा हो सावन झील में जैसे
 
५-तुम दूर हो कर भी पास ऐसे हो मेरे
जैसे धड़कता है दिल दूर तेरा मुझमें

६-अपने होने को धुआं सा समझता मैं रहा
ये अलग बात है कि उम्र भर धूँ धूँ कर जलता ही रहा 

७-अब क्या बताए कि बताए क्या 
है वही बात कि बात बताए क्या 

(अप्रमेय )