कोई कह दे कि रात तालाश की सी स्लेट नहीं
उजाले सा यह चौक अरसे से परीशां करता है
रात अपनी जिद में ही डूबे चली जाती है
मेरी आदत में शुमार है इसे चुपचाप देखना
जिंदगी का हिसाब नहीं मिलता मुझको
कि इक कतरा भर जो देख लिया तुमको
कोई मिल गया राह चलते यों ही
मंज़िले ख़याल फिर बौना निकला
सुना तुमने वही जो तुम्हे बतानी थी
कह न सका वही जो तुम्हे सुनानी थी
उजाले सा यह चौक अरसे से परीशां करता है
रात अपनी जिद में ही डूबे चली जाती है
मेरी आदत में शुमार है इसे चुपचाप देखना
जिंदगी का हिसाब नहीं मिलता मुझको
कि इक कतरा भर जो देख लिया तुमको
कोई मिल गया राह चलते यों ही
मंज़िले ख़याल फिर बौना निकला
सुना तुमने वही जो तुम्हे बतानी थी
कह न सका वही जो तुम्हे सुनानी थी
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