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Sunday, April 21, 2019

गिलहरी

तुम अभी एक गिलहरी सी
पेड़ों से उतर आई
मैंने लोक की
उस कथा को याद करते हुए प्रणाम किया
पुल निर्माण में तुमनें
राम का जो साथ दिया
शिव का त्रिपुंड कैसे जीवित हो उठा
राम की अंगुलियों के सहारे
पीठ पर तुम्हारे,
मैंने राम के सहारे सीता को
और सीता के सहारे
फिर तुम्हें याद किया।
(अप्रमेय)

Wednesday, April 17, 2019

बूंद, धरती और आकाश

पलकें ढप से मुंदती हैं
गिरती हुई बूंद सी
मुझे नहीं मालूम
बूंद, आकाश और
धरती का रिश्ता पर
इतना कह सकता हूँ
जब जब पलकें मुंदती हैं
मेरे आंखों का पानी
अंदर कहीं समुंदर में
रिस जाता है
और मुझसे क्रांति कर
धरती पर कहीं
बरस जाता है।
(अप्रमेय)

Tuesday, April 9, 2019

शहर से दूर

शहर से दूर
एक पुराने घर में
डोलता है पंखा,

शहर से दूर
एक पुराने मन्दिर में
बजता है घण्टा,

शहर से दूर
एक पुराने कुएं पर
लगा है चौपाल,

शहर से दूर
मैं और मेरी उपस्थिति
दोनों एक दूसरे से मिलते हैं
और दुपहरी के सन्नाटे सा
चुप हो जाते हैं।
(अप्रमेय)