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Saturday, March 27, 2021

लौट आना ही

शहर में आता है सन्यासी
आता है 'साधू' 
आता है मदारी,मजदूर
रिक्शावान
शहर में वे बसते हैं
जो जानते हैं -पहचानते हैं
सन्यासी का रूप
'साधू' का कमण्डलु
मदारी का डमरू
और मजदूर की कुदाल
गांव के लोग केवल एक ही
बात जानते हैं प्रारब्ध 
सन्यासी हो तो
साधू हो, मदारी हो, रिक्शावान हो
या हो किसान तो
लौट आओ कि
घर सोने से ज्यादा
मर जाने के लिए
सबसे मुफ़ीद जगह है।
(अप्रमेय)

Saturday, March 20, 2021

बेपरवाही

रास्ते अपने घर तक 
आने के बाद खत्म नहीं हो जाते
नींद में जाने के बाद भी
खत्म नहीं हो जाती तुम्हारी याद, 
पिछले बसंत उसने ही तो कहा था
हम रहें न रहें
ये पहाड़ ये झरने कुछ भी
खत्म नहीं होगा
सब कुछ रह जाएगा
एक-दूसरे की स्मृति में,
और अगर हम तुम भी न रहें
तो भी हमारे अनुपस्थिति में 
उपस्थित रहेगा सब-कुछ,
सुनों प्रिय
मेरे कमरे में मेरी जो तस्वीर
मफलर ओढ़े लगी मढ़ी है
उसे देखना और जाड़े की किसी शाम
उसे आलमारी से उसे निकाल 
लपेट लेना अपना गिरेबान 
खत्म तो कुछ भी नहीं होगा
पर बड़ी शिद्दत से बचाये रखना है
इस दुनिया के लिए बेपरवाही
किसी चाय की दुकान पर मफलर लपेटे
बेपरवाही से ठहाका लगाना और
बेपरवाही से ही सही
थोड़ा मुझे याद कर लेना।
(अप्रमेय) साधो...🙏