रास्ते अपने घर तक
आने के बाद खत्म नहीं हो जाते
नींद में जाने के बाद भी
खत्म नहीं हो जाती तुम्हारी याद,
पिछले बसंत उसने ही तो कहा था
हम रहें न रहें
ये पहाड़ ये झरने कुछ भी
खत्म नहीं होगा
सब कुछ रह जाएगा
एक-दूसरे की स्मृति में,
और अगर हम तुम भी न रहें
तो भी हमारे अनुपस्थिति में
उपस्थित रहेगा सब-कुछ,
सुनों प्रिय
मेरे कमरे में मेरी जो तस्वीर
मफलर ओढ़े लगी मढ़ी है
उसे देखना और जाड़े की किसी शाम
उसे आलमारी से उसे निकाल
लपेट लेना अपना गिरेबान
खत्म तो कुछ भी नहीं होगा
पर बड़ी शिद्दत से बचाये रखना है
इस दुनिया के लिए बेपरवाही
किसी चाय की दुकान पर मफलर लपेटे
बेपरवाही से ठहाका लगाना और
बेपरवाही से ही सही
थोड़ा मुझे याद कर लेना।
(अप्रमेय) साधो...🙏
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