शहर से दूर
एक पुराने घर में
डोलता है पंखा,
शहर से दूर
एक पुराने मन्दिर में
बजता है घण्टा,
शहर से दूर
एक पुराने कुएं पर
लगा है चौपाल,
शहर से दूर
मैं और मेरी उपस्थिति
दोनों एक दूसरे से मिलते हैं
और दुपहरी के सन्नाटे सा
चुप हो जाते हैं।
(अप्रमेय)
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