१-एक शाम कोई मेरी ऐसी भी गुजर जाए
मैं सच कहूँ और वो इसे मान भी जाए ।।
२-सिमटा कि फ़ैल गया
है यही मेरा फ़साना,
लबे तरन्नुम जो कभी गजल रही
गा रहा उसे अब जमाना ।।
३-खुद कह दूँ तो भरोसा हो न पाएगा
तुम्ही कहो कि फिर कह दूँ कैसे
४-गुजर रहा है वह सरे जिंदगी में ऐसे
बरस रहा हो सावन झील में जैसे
५-तुम दूर हो कर भी पास ऐसे हो मेरे
जैसे धड़कता है दिल दूर तेरा मुझमें
६-अपने होने को धुआं सा समझता मैं रहा
ये अलग बात है कि उम्र भर धूँ धूँ कर जलता ही रहा
७-अब क्या बताए कि बताए क्या
है वही बात कि बात बताए क्या
(अप्रमेय )
मैं सच कहूँ और वो इसे मान भी जाए ।।
२-सिमटा कि फ़ैल गया
है यही मेरा फ़साना,
लबे तरन्नुम जो कभी गजल रही
गा रहा उसे अब जमाना ।।
३-खुद कह दूँ तो भरोसा हो न पाएगा
तुम्ही कहो कि फिर कह दूँ कैसे
४-गुजर रहा है वह सरे जिंदगी में ऐसे
बरस रहा हो सावन झील में जैसे
५-तुम दूर हो कर भी पास ऐसे हो मेरे
जैसे धड़कता है दिल दूर तेरा मुझमें
६-अपने होने को धुआं सा समझता मैं रहा
ये अलग बात है कि उम्र भर धूँ धूँ कर जलता ही रहा
७-अब क्या बताए कि बताए क्या
है वही बात कि बात बताए क्या
(अप्रमेय )
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