कहीं से लौट कर आना
कभी-कभी
कहीं चले जाना होता है
समय की आंच
बहुत धीरे धीरे पकाती है जिंदगी
भाप बनते हैं सपने
सतत
मस्तिष्क की प्लेट के नीचे
कोई हटाए ढक्कन
नहीं तो
भात की तरह
उबलता ही रह जाएगा
जीवन |
(अप्रमेय)
कभी-कभी
कहीं चले जाना होता है
समय की आंच
बहुत धीरे धीरे पकाती है जिंदगी
भाप बनते हैं सपने
सतत
मस्तिष्क की प्लेट के नीचे
कोई हटाए ढक्कन
नहीं तो
भात की तरह
उबलता ही रह जाएगा
जीवन |
(अप्रमेय)
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