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Saturday, January 23, 2016

बस यों ही

ये सफ़र असां नहीं इतना भर जान लीजिए
रुक रुक के चलना और कहीं चल के रुक जाना

आँखों में उनके देखता हूँ सुकूं मिल जाता है
है दर्द दबा जो इधर छिपा उधर मिल जाता है
(अप्रमेय)

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