मैं खोजता रहा
अपना सहचर
बाद बहुत बाद में
खुला अर्थ
बंद मुट्ठी के खुल जाने जैसा,
मैं समझता रहा
प्यास सूखे गले को नम करती है
उधर खुली मुट्ठी ने जब पकड़ा हाथ
जाने का समय नजदीक था
इच्छा के दानव ने
घोटी मेरी सांस
सहचर का पुनः
छूट गया साथ ।
(अप्रमेय)
अपना सहचर
बाद बहुत बाद में
खुला अर्थ
बंद मुट्ठी के खुल जाने जैसा,
मैं समझता रहा
प्यास सूखे गले को नम करती है
उधर खुली मुट्ठी ने जब पकड़ा हाथ
जाने का समय नजदीक था
इच्छा के दानव ने
घोटी मेरी सांस
सहचर का पुनः
छूट गया साथ ।
(अप्रमेय)
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