Powered By Blogger

Monday, November 16, 2015

अपने होने में

रात जब जब आई 
ख़ामोशी लाई
फाड़ डाला उजालों ने
कान का पर्दा
जिंदगी ने दिया अपना अर्थ 
सवालों में
मैं सुनता रहा
बुनता रहा
राह पर चलता रहा
अपने होने में
अपने मिटने को
दिन ब दिन
गुदड़ी की तरह
बुनता रहा ।
(अप्रमेय)

No comments:

Post a Comment