रात जब जब आई
ख़ामोशी लाई
फाड़ डाला उजालों ने
कान का पर्दा
जिंदगी ने दिया अपना अर्थ
सवालों में
मैं सुनता रहा
बुनता रहा
राह पर चलता रहा
अपने होने में
अपने मिटने को
दिन ब दिन
गुदड़ी की तरह
बुनता रहा ।
(अप्रमेय)
ख़ामोशी लाई
फाड़ डाला उजालों ने
कान का पर्दा
जिंदगी ने दिया अपना अर्थ
सवालों में
मैं सुनता रहा
बुनता रहा
राह पर चलता रहा
अपने होने में
अपने मिटने को
दिन ब दिन
गुदड़ी की तरह
बुनता रहा ।
(अप्रमेय)
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