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Wednesday, October 25, 2017

तुम आए थे

कागज के फटे टुकड़े की तरह नहीं 
तुम आए थे 
एक पुराने कवि के हस्तलिखित 
कविता की तरह 
जिसको मैंने उसी वक्त
मन की फ़ाइल में
नत्थी कर के सबसे सुरक्षित
जगह रखा था,
तो क्या हुआ पन्ने थोड़े
पड़ गए थे पीले
और ज्यादा छूने से
उसके फट जाने का भय था,
उसका अर्थ मेरी स्मृति में
बना चुके थे एक साकार चित्र
जिसकी आँखों के नीचे
ओस सा ...कुछ बूंद सा
नहीं.. नहीं... भाप के निशाँ सा
शब्द लेटा हुआ था
मैं तो तबसे वहीं आस-पास
उसमें स्वर गूँथने के लिए
भटक रहा हूँ
कल कुछ होगा
उसे आज बैठे-बठे सुन रहा हूँ |
(अप्रमेय )

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