पवित्रता अपवित्रता के
कीचड़ से निकला
फूल दिखता है,
सत्य झूठ के
दल-दल से खिसका
किनारा दिखता है,
आदमी आदमी सा और
जानवर जानवर सा
अब मुहावरा समझो यारों,
आदमी जानवर सा
जानवर आदमी सा
इधर दिखता है,
रात में सुबह और
सुबह में रात तो समझता हूं लेकिन
कोई चुप सा इन्हें हर घड़ी
निहारता सा दिखता है।
(अप्रमेय)
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