एक मामूली सा हस्तक्षेप
करना चाहता हूं
तुम से कुछ न कह कर चुप रहना
चाहता हूं,
मन्नते न दुआ न ही सलाम
तुम्हें देखना बस देखना
चाहता हूं,
रात रात हो और दिन दिन
जैसा है सब कुछ
उसे वैसा ही समझना
चाहता हूं,
मैं चुप हूँ यही ख्वाइश भी है मेरी
इसी चुप्पी के साथ
तुमसे विदा होना
चाहता हूं।
(अप्रमेय)
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