Powered By Blogger

Saturday, January 23, 2016

ये भी बस

कोई कह दे कि रात तालाश की सी स्लेट नहीं 
उजाले सा यह चौक अरसे से परीशां करता है 

रात अपनी जिद में ही डूबे चली जाती है
मेरी आदत में शुमार है इसे चुपचाप देखना 

जिंदगी का हिसाब नहीं मिलता मुझको 
कि इक कतरा भर जो देख लिया तुमको 

कोई मिल गया राह चलते यों ही 
मंज़िले ख़याल फिर बौना निकला

सुना तुमने वही जो तुम्हे बतानी थी
कह न सका वही जो तुम्हे सुनानी थी

No comments:

Post a Comment