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Sunday, August 18, 2013

गीत चुराता हूँ



हाँ मै गीत चुराता हूँ 
झरनों की कल-कल 
चिड़ियों की चहचहाहट 
हवाओं के झोके 
सबके गीत चुराता हूँ 
हाँ मै गीत गुनगुनाता हूँ,
सर्द में सहमा हुआ 
गर्म में कुछ उखड़ा हुआ 
बसंत में खिलखिला कर 
अक्सर मै गुनगुनाता हूँ 
हाँ मै ऋतुओं के गीत चुराता हूँ,
सुबह के गुलाबीपन का 
दोपहर में कुछ चमकीला हुआ 
लालिमा शाम की 
अपने गीत में बहाता हूँ 
हाँ मै गीत चुराता हूँ,
अनगढ़ जंगलो को देख कर 
पहाड़ों की उचाईयों पर 
नर्म बर्फ की गद्दियों पर सोता हूँ 
नर्म-नर्म गुनगुनाता हूँ 
हाँ मै अनगढ़ गीत चुराता हूँ,
भूखों को तड़पता देख कर 
रोटी की कीमत समझ कर 
कभी-कभी मै 
भूख को गुनगुनाता हूँ 
हाँ मै तड़पते हुए लोंगो के 
गीत चुराता हूँ......
(अप्रमेय )

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