Powered By Blogger

Thursday, March 20, 2014

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के जन्मदिन पर

बिस्मिल्लाह !
तुम्हारे जीते जी 
नही सुन पाए वह 
जो तुम शहनाई से 
हर मंच पर 
बजाते हुए बारात का 
सन्देश देते रहे 
नही समझ पाए वह 
जिंदगी एक बारात है 
और हम सब बाराती। 
तुम जिन्दा जब तक रहे 
बजती रही तुम्हारी शहनाई 
और अब 
जब तुम नहीं हो 
गूंज रही है तुम्हारी शहनाई ,
बिस्मिल्लाह !
काशी वहाँ नही 
जहाँ हम सब लोग जाते हैं 
वह तो हम सब के
ह्रदय में है 
जहाँ हम सब कभी 
पहुँच ही नहीं पाए 
बिस्मिल्लाह !
वहाँ तो तुम अब भी 
भोले की बारात में 
आलाप दे रहे हो ,
हमें माफ़ करना 
जो हम तुम्हे समझ नही पाए 
दुनियाँ के बारात में 
ठीक से शरीक तक न हो पाए। 
(अप्रमेय )

No comments:

Post a Comment