क्रान्ति के
पथ भ्रष्ट हो गए रास्ते में
आदमी नारों की गूँज सा
केवल अब सुनाई पड़ता है,
या
टाइप किया हुआ भाषणों सा
ठन्डे बस्ते में बंद है
जिसे कभी खोला नहीं जाता
किसी मंच पर
न ही देखा जाता है
मंत्रणा करते
किसी गोपनीय कार्यालय में,
आदमी-आदमी नहीं
सिर्फ एक नारा है
जिसे क्रांति के ख़त में
एक कानूनी स्टैम्प की तरह
चिपका दिया गया है |
(अप्रमेय)
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