मुझमें सिद्धि है
अपनी क्रूरता को
सार्वजनिक न होने देने की
और मालूम है
कैसे पकड़े रहनी है दया
जिससे वह बह न सके
और इसके एवज में
कहीं कोने में छुप कर
जी भर रो लेने की |
पता नहीं कैसे और कब
मैंने पालतू बना दिया
अपनी आँख और कान
मैं पूछता हूँ जब उनसे
वकील की तरह
वह दे देते है साफ़ जवाब
मैंने तो सुने नहीं
अपमान की आवाज
देखे नहीं करुणा के हाथ |
मैं सिद्धहस्त हो चुका हूँ
रोज-रोज
अपने उबल रहे रक्त के भाप को
हंसी के प्लेट से ढक देने में
और कहीं मिठाई की दुकान पर
चुप चाप उबलते दूध को
रबड़ी बन जाने तक देखने में |
मैं सड़को का सिकंदर हूँ
अपनी ग्लानी को सड़क किनारे
कंकरीट पर थूकते हुए
टहलना जानता हूँ |
मैं कृष्ण हूँ
तुम्हारे प्रेम को
अपने सिने के कब्रिस्तान में
दफ्न कर देना जानता हूँ
और इस एवज में
बागीचे में कहीं सूख रहे
पौधे को जल पिला कर
जिंदगी को
बखूबी निभाना जानता हूँ |
{अप्रमेय}
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