कभी-कभी
मैं हाथ डालता हूँ जब
अपने झोले में
तो उसका कोना
मुझे पकड़ा जाता है
एक-सकून, एक-ठंडक
जहां मुझे घर बसाने की इच्छा होती है
जिंदगी का घर
इतना छोटा हो सकता है क्या ?
जहां रहा जा सके
खाना पकाया जा सके
या फिर अपनी इच्छाओं का
सामान रखा जा सके
कभी-कभी
ऐसा सोचना
सिर्फ सोचना नहीं
जिंदगी का पूरा सवाल
बन जाता है
_ अप्रमेय _
मैं हाथ डालता हूँ जब
अपने झोले में
तो उसका कोना
मुझे पकड़ा जाता है
एक-सकून, एक-ठंडक
जहां मुझे घर बसाने की इच्छा होती है
जिंदगी का घर
इतना छोटा हो सकता है क्या ?
जहां रहा जा सके
खाना पकाया जा सके
या फिर अपनी इच्छाओं का
सामान रखा जा सके
कभी-कभी
ऐसा सोचना
सिर्फ सोचना नहीं
जिंदगी का पूरा सवाल
बन जाता है
_ अप्रमेय _
No comments:
Post a Comment