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Tuesday, September 9, 2014

यह देश

इस देश में पिता चुप हैं
और माताएं अगोर रही हैं
अपने-अपने पतियों का अनुपस्थित आदेश
भगवान् तो कभी भी यहाँ नहीं आया
हिन्दुओं के पास
मुसलमानों और इसाईयों के पास
हाँ उसका झंडा था उनके पास
जो टेक्नोलौजी से भी सूक्ष्म
एक ऐसा बटन था
जिसका होना उनके लिए
सम्मान के साथ-साथ
भोजन का जुगाड़ था
मुझे परिस्थिति को
अब भगवान् नहीं कहना
क्यों कि उसने कभी
सरकारी नौकरी नहीं दी किसीको
इस देश में
राजस्थान के राजपूत
अब कहते हैं
चुपके से
हम उस जाति के नहीं
सिर्फ कागजों में
चस्पा हैं
सरकारी दफ्तरों में
फाइलों के बीच
दबे हुए,
बाहर कपड़ा पहने हुए
जो हम करते हैं नौकरी
सिर्फ उसके लिए
हमने बदला है अपना रूप,
हमारा खून
राजपूत का ही खून रहेगा
चाहे किसी भी
सदी के लैब में इसे टेस्ट करा लेना,
मुझे पंडितों से नहीं
और न ही राजपूतों से
पूछना है यह सवाल
मैं सुनना चाहता हूँ उनसे
जिनके लिए यह"शब्द " बना
और सरकारी नौकरी दिलाने का गुलेल बना
कि इस शब्द का प्रतिबिम्ब तुम्हे दिखा क्या
औरत होने के आईने में
माँ होने के आईने में
पिता होने के आईने में
या फिर बेटा, बेटी होने के आईने में
सब कुछ होने के सन्दर्भ में
तुम अपने को सभ्यता के किस पार
देखना चाहोगे ?

(अप्रमेय )

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