वे रास्ते तलाशतें हैं सदियों से
वे भटक-भटक गएँ सदियों से
सदियाँ सदियों का हिसाब नहीं रखती
हम रखतें हैं उनका
जो कभी हमारा नहीं रखतें
आदमी-आदमी नहीं
हिसाबी है
पल-पल में
सोते-जागते
झगड़ते -प्रेम करते
आदमी क्या हुआ
सदियों से.…
हिसाबी बना
हिसाब से कुआँ -तालाब गढ़ते
हिसाब से
खर- पतवार बीनते
हिसाब से
समय-समय पर
आदमी के हिसाब के परिभाषा को
हिसाब से बगाड़ते
मैं देखता हूँ
दुनियाँ बची हुई है
अब-तक
क्यों ? पूछता हूँ
और हिसाब से इसे
ख़त्म होते देख
बेचैन हो जाता हूँ
(अप्रमेय
वे भटक-भटक गएँ सदियों से
सदियाँ सदियों का हिसाब नहीं रखती
हम रखतें हैं उनका
जो कभी हमारा नहीं रखतें
आदमी-आदमी नहीं
हिसाबी है
पल-पल में
सोते-जागते
झगड़ते -प्रेम करते
आदमी क्या हुआ
सदियों से.…
हिसाबी बना
हिसाब से कुआँ -तालाब गढ़ते
हिसाब से
खर- पतवार बीनते
हिसाब से
समय-समय पर
आदमी के हिसाब के परिभाषा को
हिसाब से बगाड़ते
मैं देखता हूँ
दुनियाँ बची हुई है
अब-तक
क्यों ? पूछता हूँ
और हिसाब से इसे
ख़त्म होते देख
बेचैन हो जाता हूँ
(अप्रमेय
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