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Sunday, September 14, 2014

वसन्त

वसन्त:
तुम्हारे गमले में भी तो
उतरा होगा वसन्त
अपनों से कटा हुआ
चम्मच भर वसन्त
तुम्हे कितनी ख़ुशबू देता होगा ?
मैं तो देख न सका
उसे उतरते-पसरते
जंगलों- पहाड़ों और
मरघटों में…
पर इस उलझन में बुन गया
एक पद--- वसन्त 
यह पद एक पद नहीं
वसन्त है 'वसन्त'
तुम उतरो वसन्त 
उनके लिए भी
जो सिर्फ़ चाहते हैं
छटाक-भर वसन्त,
और उनके लिए भी पूरा का पूरा
लबालब गड़ही-पोखरा, तालाब
भर कर
जो सुबह- साँझ 
साझे की आस लिए
तुम्हारे लिए भर-पेट  गीत  गाते हैं

(अप्रमेय )

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