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Sunday, May 31, 2015

दाढ़ी

उसकी दाढ़ी 
धीरे-धीरे बढ़ी होगी
साल दर साल,
जोड़ते हुए ,सपनों के लिए नहीं
जुगाड़ करते दो पैसे के लिए
ताकि उनसे
चूल्हे में सुलगती रहे आग,
उसकी दाढ़ी यों ही नहीं बढ़ गई होगी
धीरे-धीरे बढ़ी होगी
चिल्लाने के बरक्स
मौन के साथ खड़े होने में
अपने बच्चे को अस्पताल
दाखिल न करा पाने के कारण
अपने हाथो में उसकी दर्द की कराह को
मौत तक जोड़ते हुए
उसकी दाढ़ी
उसके लिए उसके चेहरे की नकाब है
जिसे वह आईने में नहीं देखना चाहता,
आज मंदिर के सामने
गुमटी के अंदर
उसकी आँखें
चाय पकाती हैं बिलकुल कड़क
देखो उसकी दाढ़ी है आज
द्रष्टा...
जो कि उसकी चेतना के साथ
हमेशा बढ़ती और गहराती रही
काली से सफेद होती रही

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