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Tuesday, June 23, 2015

कृष्ण

कृष्ण
तुम द्रौपदी के ह्रदय में
सूर्य की तरह मत उगो
दुशासन की कंठ से
रुधिर की तरह बहो
कहानियाँ जिन्होंने लिख डालीं
बंधे-बंधे से शब्दों में
उनके हाथों में धनुष बन
जिंदगी के इस कर्ण मंच को बधो
आओ कृष्ण
श्रद्धावान आलसियों की श्रद्धा
और परंपरा से ऊबे नास्तिकों को
पार-अपार की फांसी से छुड़ाओ
जिंदगी को महकाओ
विवेक की पतवार थमाओ
( अप्रमेय )

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