मैं लिख सकूँ
कोई गीत
तुम्हारे लिए
जिसमे छंद क्या,पद क्या,
स्वर क्या !
किसी की प्रतिबद्धता न हो,
तुम गाओ उसे
बिना किसी संकोच के
कि सुन सके तुम्हारा हृदय
कि डोल सके तुम्हारे
अंतस का जंगल,
कोई चिड़िया
कोई जुगनू
कोई भी पतंगा
बिना आहट के
मिला सके तुम्हारे गीत में
सृष्टि का स्वर मंगल
(अप्रमेय)