हमने जंगल में आग पाई
बची राख भी माथे से लगाई
हमने देहरी पर दीप जलाएँ
अपने हाथ जुड़े पाएँ
हमने ध्वनि में शब्द की चिंगारी पाई
शास्त्र के धुएं सुलगाए
धीरे धीरे समझा हमने
अपने भीतर की आग को
जिसके ताप से
हो सकती थी दुनिया
प्यार सी गुनगुनी
पर हमने उसे दबाया
जिसके एवज में
ऐसा संसार पाया ।
(अप्रमेय)
बची राख भी माथे से लगाई
हमने देहरी पर दीप जलाएँ
अपने हाथ जुड़े पाएँ
हमने ध्वनि में शब्द की चिंगारी पाई
शास्त्र के धुएं सुलगाए
धीरे धीरे समझा हमने
अपने भीतर की आग को
जिसके ताप से
हो सकती थी दुनिया
प्यार सी गुनगुनी
पर हमने उसे दबाया
जिसके एवज में
ऐसा संसार पाया ।
(अप्रमेय)
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