कोई कैसे खोलता है अपने दिल का राज धीरे धीरे
जैसे कोई कली अपना ही फूल गुनती हो धीरे धीरे
खिलें बाग़ में दिखें और चुभ भी गएँ उनकी आँखों में
मलाल बस यह रहा रंग छोड़ न पाएँ उनके हाथों में
जिंदगी जिंदगी का मतलब कुछ यों बताती है
रात रात में जैसे और रात ढल सी जाती है ।
अप्रमेय
जैसे कोई कली अपना ही फूल गुनती हो धीरे धीरे
खिलें बाग़ में दिखें और चुभ भी गएँ उनकी आँखों में
मलाल बस यह रहा रंग छोड़ न पाएँ उनके हाथों में
जिंदगी जिंदगी का मतलब कुछ यों बताती है
रात रात में जैसे और रात ढल सी जाती है ।
अप्रमेय
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