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Monday, November 16, 2015

रात रात में

कोई कैसे खोलता है अपने दिल का राज धीरे धीरे
जैसे कोई कली अपना ही फूल गुनती हो धीरे धीरे
खिलें बाग़ में दिखें और चुभ भी गएँ उनकी आँखों में
मलाल बस यह रहा रंग छोड़ न पाएँ उनके हाथों में 
जिंदगी जिंदगी का मतलब कुछ यों बताती है 
रात रात में जैसे और रात ढल सी जाती है ।
अप्रमेय

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