आदमी अपने जीवन में
कहीं जाता नहीं,
चला आता है
माँ की पेट से बेटा बन कर
और उससे पहले
वे जो आ चुके थें
उसे बुलाने के लिए
वे भी चले आएं थे
शताब्दियों की यात्रा के बाद
तुम्हारे लिए
मैं देखता हूँ वह चक्र
आदमी से पहले
पशुओं से पहले
जीवों से पहले
पेड़-पौधों से पहले
पानी से पहले
हवा-आकाश से पहले,
अनंत यात्राओं के बाद
तुम्हारे लिए वे आ गए थें
गीतों में छंद बन कर
ध्वनि में भाषा का रूप लिए
और न जाने किस -किस विधा में
कि तुमसे मिल सके,
सोचता हूँ जब ऐसी यात्रा
जो बिना किसी पहिये से चली हो
कैसी होगी
सोचता हूँ बदलते रूप की बैचनी
और काँप जाता हूँ
ऐसे में कोई चेहरा नहीं दिखता
जिसे माँ कह कर पुकार सकूँ |
(अप्रमेय)
कहीं जाता नहीं,
चला आता है
माँ की पेट से बेटा बन कर
और उससे पहले
वे जो आ चुके थें
उसे बुलाने के लिए
वे भी चले आएं थे
शताब्दियों की यात्रा के बाद
तुम्हारे लिए
मैं देखता हूँ वह चक्र
आदमी से पहले
पशुओं से पहले
जीवों से पहले
पेड़-पौधों से पहले
पानी से पहले
हवा-आकाश से पहले,
अनंत यात्राओं के बाद
तुम्हारे लिए वे आ गए थें
गीतों में छंद बन कर
ध्वनि में भाषा का रूप लिए
और न जाने किस -किस विधा में
कि तुमसे मिल सके,
सोचता हूँ जब ऐसी यात्रा
जो बिना किसी पहिये से चली हो
कैसी होगी
सोचता हूँ बदलते रूप की बैचनी
और काँप जाता हूँ
ऐसे में कोई चेहरा नहीं दिखता
जिसे माँ कह कर पुकार सकूँ |
(अप्रमेय)
No comments:
Post a Comment