चाँद को ले लिया उसने
और चरखा को तुमने
मैंने इधर एक गीत गाया
और नोच ली एक पंखुड़ी
मेरे ह्रदय में खिले गुलाब के पुष्प से
खुशबू मौजूद है अभी
कि दी गईं सलामियाँ
कलम किए गए सर को देख कर
एक पंखुड़ी और नोच दी मैंने
कि बन गई एक कविता हमारी
मैंने देखें हजारों देश-भक्त और
चखना चाहा स्वाद देश भक्ति का
हाँ आख़िर तक नहीं समझ पाया
कि अचानक एक दिन नज़र पड़ी
भूख की तलाश में गुम सी
एक बच्चे की लाश
न कोई गीत गाया और
न ही कह पाया कोई कविता
बस नोच डालीं
सभी पंखुड़ियां ह्रदय से
और फिर
झर गईं सभी पत्तियां भी
अंदर ऐसा तूफ़ान आया ।
(अप्रमेय)
और चरखा को तुमने
मैंने इधर एक गीत गाया
और नोच ली एक पंखुड़ी
मेरे ह्रदय में खिले गुलाब के पुष्प से
खुशबू मौजूद है अभी
कि दी गईं सलामियाँ
कलम किए गए सर को देख कर
एक पंखुड़ी और नोच दी मैंने
कि बन गई एक कविता हमारी
मैंने देखें हजारों देश-भक्त और
चखना चाहा स्वाद देश भक्ति का
हाँ आख़िर तक नहीं समझ पाया
कि अचानक एक दिन नज़र पड़ी
भूख की तलाश में गुम सी
एक बच्चे की लाश
न कोई गीत गाया और
न ही कह पाया कोई कविता
बस नोच डालीं
सभी पंखुड़ियां ह्रदय से
और फिर
झर गईं सभी पत्तियां भी
अंदर ऐसा तूफ़ान आया ।
(अप्रमेय)
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