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Thursday, June 1, 2017

यहाँ से

लटकी अटकी हुई टहनियों
को क्या पता 
फल कब आएंगे
और जब आएंगे 
तब क्या वे उनका 
स्वाद भी ले पाएंगे
जो पत्त्ते बन नहीं पाए फूल
उनके पास क्या होता होगा
वृक्ष क़ानून,
जड़ों ने ऊँचाई के साथ
फुनगियों से
कबका नाता तोड़ लिया
अतल गहराई में वह सदियों से
अब किससे मिलना चाहती हैं,
हवाएं काश थोड़ा ठहर पातीं
इन वृक्षों के साथ
तो यकीं मानिए
इस धरती के ऊपर
आकाश का नहीं होता नीला रंग
पेड़ की फुनगियां
धरती की तरफ और उनकी जड़ें
हथकड़ी बन कर
जकड़ रही होती
पूरा सूर्य-मंडल।
(अप्रमेय)

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