कुछ कह दूं ऐसा मन कहता है
पर कौन इसे सुनता है,
लिखना-पढ़ना सब वाहियात सा हो जाता है
जब प्यार से हमें कोई देख जाता है
कभी न काम आई ये मैंने आजमा के देखा है
दुनिया ने जिसे जद्दो-जहद से खरीदा है
ईश्वर है या नहीं कौन इसे ढूंढता है
पर मैंने उसे बाजार में बिकते हुए देखा है
किस्सा कोताह शायरी सब कुछ एक बहाना है
आदमी को एक दिन बिना कुछ कहे चले जाना है।
(अप्रमेय)
पर कौन इसे सुनता है,
लिखना-पढ़ना सब वाहियात सा हो जाता है
जब प्यार से हमें कोई देख जाता है
कभी न काम आई ये मैंने आजमा के देखा है
दुनिया ने जिसे जद्दो-जहद से खरीदा है
ईश्वर है या नहीं कौन इसे ढूंढता है
पर मैंने उसे बाजार में बिकते हुए देखा है
किस्सा कोताह शायरी सब कुछ एक बहाना है
आदमी को एक दिन बिना कुछ कहे चले जाना है।
(अप्रमेय)
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