वीरान जंगल से दूर
भागता है शहर
एक लौ उदास जलती है
झोपड़ी के अंदर
और कपूर उधर जल कर
खुशबू बिखेरते हुए
भरे पेट को ईश्वर का
इत्मिनान से इंतज़ार करने का
नुस्ख़ा सिखाता है
उम्र बढ़ती है
और मोह की आत्मा
और भी कस कर
लपेटती है जिंदगी,
मैं उदास हूँ बाहर बारिश में
चिड़िया का घोंसला
भीग रहा है
और चिड़िया उसमें से नदारद है।
(अप्रमेय)
भागता है शहर
एक लौ उदास जलती है
झोपड़ी के अंदर
और कपूर उधर जल कर
खुशबू बिखेरते हुए
भरे पेट को ईश्वर का
इत्मिनान से इंतज़ार करने का
नुस्ख़ा सिखाता है
उम्र बढ़ती है
और मोह की आत्मा
और भी कस कर
लपेटती है जिंदगी,
मैं उदास हूँ बाहर बारिश में
चिड़िया का घोंसला
भीग रहा है
और चिड़िया उसमें से नदारद है।
(अप्रमेय)
No comments:
Post a Comment