चन्द्रमा की गोलाई लिए
दो नन्ही सी प्यारी आँखों ने
अपने गालों पर बना दिए
अश्रु चित्र....
पेड़ों ने देखा
किन्तु वह केवल खड़े नहीं रहे
हिलाया अपना पत्ता-पत्ता
जिनके पास फूल थें
उन्होंने झाड़ लीं अपनी-अपनी पंखुड़ी,
और धरती इधर पीती रही
आसमान का पसीना
खेल चलता ही रहा
और हम खेलते ही रहे अनवरत
तुम मिलते तो पूछता
ऐसा क्या है उधर
जिसे तुम हम सब से छुपाये रहे
और ऐसा क्या है इधर
जिससे तुम हम सब को भुलाए रहे
(अप्रमेय )
दो नन्ही सी प्यारी आँखों ने
अपने गालों पर बना दिए
अश्रु चित्र....
पेड़ों ने देखा
किन्तु वह केवल खड़े नहीं रहे
हिलाया अपना पत्ता-पत्ता
जिनके पास फूल थें
उन्होंने झाड़ लीं अपनी-अपनी पंखुड़ी,
और धरती इधर पीती रही
आसमान का पसीना
खेल चलता ही रहा
और हम खेलते ही रहे अनवरत
तुम मिलते तो पूछता
ऐसा क्या है उधर
जिसे तुम हम सब से छुपाये रहे
और ऐसा क्या है इधर
जिससे तुम हम सब को भुलाए रहे
(अप्रमेय )
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