अचानक एक भद्द सी
आती है आवाज
और खुल जाती है नींद मेरी
रात को जैसे
गिरा हो पिछवाड़े
पेड़ से पक कर कोई आम
बिस्तरे पर बाग़ नहीं होता
और कितना भी
कूलर कर ले शोर
आँधिया नहीं आती
अक्सर कई दिनों से
ऐसे ही अचानक
टूट जाती है नींद मेरी
और धड़कन
सीने से खिसक कर
कानों के पास
चली आती है मेरी ।
(अप्रमेय)
आती है आवाज
और खुल जाती है नींद मेरी
रात को जैसे
गिरा हो पिछवाड़े
पेड़ से पक कर कोई आम
बिस्तरे पर बाग़ नहीं होता
और कितना भी
कूलर कर ले शोर
आँधिया नहीं आती
अक्सर कई दिनों से
ऐसे ही अचानक
टूट जाती है नींद मेरी
और धड़कन
सीने से खिसक कर
कानों के पास
चली आती है मेरी ।
(अप्रमेय)
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