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Wednesday, October 25, 2017

प्रेरणा

वहां नहीं मिली मुझे प्रेरणा 
जहाँ पढ़ा था मैंने 
भूख से गई जान
वहां भी नहीं निकली थी आह
जहाँ आदमी को 
पकड़ लिया गया था
जेब काट कर भागते हुए
कल शाम सब्जी मंडी में
देर रात के बाद
बंद होती दूकानों के बीच
वह सभ्य महिला
बीन रही थी
इधर-उधर पड़ी सब्जियां
मैंने पूछ ही लिया बहन
इसका क्या करोगी
उसने कही अपनी बात
और सच कहूँ
मुझे सुनाई पड़ी एक कविता
जिसके स्वर तो मैं यहाँ
नहीं सुना सकता
पर सुना रहा हूँ वह कविता-
बच्चे कर रहे हैं मेरा इंतज़ार
मां पैसा लायेगी और साथ
कुछ मिठाइयां भी और
आज हम सब मिल कर
खाएंगे भात के साथ भाजी भी
अब आप ही बताइये भाई साहब
कुछ काम मिला नहीं
तो पैसे कहाँ से आएंगे
मिठाई न सही
पर मेरे बच्चे भात-भाजी
तो खा पाएंगे ।
(अप्रमेय)

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