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Tuesday, October 24, 2017

चुप

आँखे धीरे-धीरे
हो ही जाती हैं चुप
जब लड़खड़ाती है जुबान
या यों कहें
कान सुनने से 
मना कर देता है
मद्धिम प्रेमिका की आवाज,
जिंदगी की किताब
पन्नों के ऊपर
शब्द भर मात्र नहीं
तुम्हें पढ़ना है यदि उसे
तो झांकना जरा इधर-उधर
मसलन तुम्हारे जूते पीछे रैक में
किसी बच्चे के जूतों को आगे कर
रास्ता दिखा रहे होंगे
और तुम्हारे कपड़े
अनुभव की इबारत का
तह लगाए चुप-चाप
अनंत की यात्रा से भयभीत हुए
सुन्न करताल बजा रहे होंगे ।
(अप्रमेय )

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