कोई नहीं देखता अब
जी भर आकाश
पास फुदकती चिड़ियों की
लेता नहीं कोई आस
किसको फुर्सत है पेड़ो के पास
कोई बैठे सुबह शाम फिर भी
जाने क्यों सदियों से वे
देते रहे तम्हारा साथ
आग चाहे यहाँ जले चाहे जले वहां
तुमने उसे छुआ कि जले तुम्हारे हाथ
दरिया चाहे यहाँ बहे चाहे बहे वहां
अंजुरी भर उठाया कि गीले हो गए हाथ,
किसे फुर्सत कि इन किस्सों को दोहराए
आदमी है वह आदमी सा जीया चला जाए !
(अप्रमेय )
जी भर आकाश
पास फुदकती चिड़ियों की
लेता नहीं कोई आस
किसको फुर्सत है पेड़ो के पास
कोई बैठे सुबह शाम फिर भी
जाने क्यों सदियों से वे
देते रहे तम्हारा साथ
आग चाहे यहाँ जले चाहे जले वहां
तुमने उसे छुआ कि जले तुम्हारे हाथ
दरिया चाहे यहाँ बहे चाहे बहे वहां
अंजुरी भर उठाया कि गीले हो गए हाथ,
किसे फुर्सत कि इन किस्सों को दोहराए
आदमी है वह आदमी सा जीया चला जाए !
(अप्रमेय )
No comments:
Post a Comment