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Tuesday, October 24, 2017

कोई नहीं देखता

कोई नहीं देखता अब 
जी भर आकाश 
पास फुदकती चिड़ियों की 
लेता नहीं कोई आस 
किसको फुर्सत है पेड़ो के पास 
कोई बैठे सुबह शाम फिर भी
जाने क्यों सदियों से वे
देते रहे तम्हारा साथ
आग चाहे यहाँ जले चाहे जले वहां
तुमने उसे छुआ कि जले तुम्हारे हाथ
दरिया चाहे यहाँ बहे चाहे बहे वहां
अंजुरी भर उठाया कि गीले हो गए हाथ,
किसे फुर्सत कि इन किस्सों को दोहराए
आदमी है वह आदमी सा जीया चला जाए !
(अप्रमेय )

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