सटी किताबों के ऊपर धूल
और थोड़े दूरी पर
रखी चीज़ों पर
जाल लग जाते हैं,
कितना भी गहरा
क्यों न हो तालाब
धीरे-धीरे
सूख ही जाता है,
मुझे अच्छा नहीं लगता
सुबह-सुबह उदास होकर
अपनी कविताओं में
उन्हें बुलाना पर
चिड़ियों की पुकार
और सूर्य का प्रकाश
हड्डियों से लेकर आत्मा तक
चुप-चाप हाथ की पकड़
कैसे ढीली हो
इसका जादू सिखा जाते हैं,
रात कितनी भी गहरी हो
और दिन कितना भी प्रकाशमान
आदमी की आंखों से दोनों ही
जुदा हो जाते हैं।
(अप्रमेय)
और थोड़े दूरी पर
रखी चीज़ों पर
जाल लग जाते हैं,
कितना भी गहरा
क्यों न हो तालाब
धीरे-धीरे
सूख ही जाता है,
मुझे अच्छा नहीं लगता
सुबह-सुबह उदास होकर
अपनी कविताओं में
उन्हें बुलाना पर
चिड़ियों की पुकार
और सूर्य का प्रकाश
हड्डियों से लेकर आत्मा तक
चुप-चाप हाथ की पकड़
कैसे ढीली हो
इसका जादू सिखा जाते हैं,
रात कितनी भी गहरी हो
और दिन कितना भी प्रकाशमान
आदमी की आंखों से दोनों ही
जुदा हो जाते हैं।
(अप्रमेय)
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