उनके शरीर लगातार
श्मशान घाट की तरफ बढ़ रहे हैं
जिसमें से निकल रहा है धुंआ,
उन्होंने अब आग शब्द को
अपनी कल्पना से
मूर्त कर दिया है,
उनकी आँखें पर्त दर पर्त
चट्टानों की तरह
कठोर और नुकीली हो गई हैं,
उन्होंने इस शब्द को
अब अपनी आँखों में
साकार कर लिया है,
बहुत पहले किसी ने
कहा था जिसकी लिखावट
अब पीली पड़ चुकी है
के डरो वह देख रहा है,
आदमी ने अब डरना बंद
जीना शुरू कर दिया है.
(अप्रमेय)
श्मशान घाट की तरफ बढ़ रहे हैं
जिसमें से निकल रहा है धुंआ,
उन्होंने अब आग शब्द को
अपनी कल्पना से
मूर्त कर दिया है,
उनकी आँखें पर्त दर पर्त
चट्टानों की तरह
कठोर और नुकीली हो गई हैं,
उन्होंने इस शब्द को
अब अपनी आँखों में
साकार कर लिया है,
बहुत पहले किसी ने
कहा था जिसकी लिखावट
अब पीली पड़ चुकी है
के डरो वह देख रहा है,
आदमी ने अब डरना बंद
जीना शुरू कर दिया है.
(अप्रमेय)
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