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Monday, April 23, 2018

वसंत

वसंत की सुबह मुझे नही सुहाती
फिर शाम फुर्सत में गुनता हूँ वसंत
इधर-उधर से
शाम को मैं देख पाता हूँ 
उन बचे हुए फूलों को
जो नहीं चढ़ाए गए किसी देवता के सर पर
मिल पाता हूँ उन चिड़ियों से
जो वसंत के आगमन पर
कतार में उड़ चले थे दिगम्बर पथ पर
वसंत और मैं
मैं और वसंत
दोनों ही एक दूसरे से नहीं मिल पाए
बस खबरें दर्ज करते रहें
सदियों से अपने-अपने
हिसाब के पन्नों पर।
(अप्रमेय)

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