रोटी के निवाले ने
मुझे स्मृति के दरवाजे पर खड़ा किया
वहां सुनहरे पर्दों पर लिखी थी इबारत
'अन्नम वै ब्रह्म'
मैं उसे धन्यवाद कहता कि अचानक
एक सवाल उस पर्दे के पीछे से
सूर्य की तरह उदित हुआ,
उनका क्या दोष था जिन्हें आज
भूखा सोना पड़ा !
मैंने धन्यवाद को स्थगित किया
और थोड़े विराम के बाद
अहं ब्रह्मासि की सत्यता और
और अपनी दयनीयता
दोनों ही परिस्थिति को
थाली में बचे जूठन के साथ
विदा होते देख पाया ।
(अप्रमेय)
मुझे स्मृति के दरवाजे पर खड़ा किया
वहां सुनहरे पर्दों पर लिखी थी इबारत
'अन्नम वै ब्रह्म'
मैं उसे धन्यवाद कहता कि अचानक
एक सवाल उस पर्दे के पीछे से
सूर्य की तरह उदित हुआ,
उनका क्या दोष था जिन्हें आज
भूखा सोना पड़ा !
मैंने धन्यवाद को स्थगित किया
और थोड़े विराम के बाद
अहं ब्रह्मासि की सत्यता और
और अपनी दयनीयता
दोनों ही परिस्थिति को
थाली में बचे जूठन के साथ
विदा होते देख पाया ।
(अप्रमेय)
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