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Thursday, April 26, 2018

सांचा


एक तड़प जो उठी थी
उसे गा दिया
जब कभी भी उसे सुना जाएगा
प्रेम पथिकों के बीच
संवाद हो ही जाएगा,
                   
एक रूप बिना स्पर्श के
गढ़ता जा रहा है अंदर
कोई यायावर प्रकट होगा
श्वेत कागज सा  
जिसपर आँखों की तुलिका
अपने भावों से
भर देगी उसमें आत्मा का रंग,

देर-सबेर
कोई न कोई सांचा
मिल ही जाएगा
जिसमें रूप का अरूप से
मिलन हो ही जाएगा
 (अप्रमेय)

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