दिनभर भटकता जो रहा इधर उधर
रात ने फिर घेर लिया चारो तरफ।
घर है खाली और जेब भी खाली
तमाशा बनाया तुमने मेरा चारो तरफ।
मिलते नहीं और देखते भी नही क्या कहूँ
हां सवालों में डूबा हूँ मैं अब चारो तरफ।
कितना मुश्किल है शेर में सच कह पाना
देखो झूठ कैसे उतरता है चारो तरफ।
मिसरा लिखो या करो पूरी जिंदगी
दुख दुख टपकता है यहाँ चारो तरफ।
(अप्रमेय)
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